अंधे और आस्तिक दोनों बराबर समझे जाते।
इसलिए शायद लोग तालीम सुनने से घबराते।।
नींद से दूर-दूर तक वास्ता ही नही रहा मेरा।
न जाने ख्वाब क्यों पलकों पर टहलने आते।।
लोग कहते जवानी में जरा सम्भल कर चल।
सलाह कौन मानता पहले मजा फिर दर्द आते।।
किसी से खास मतलब न रखने के बावजूद।
लोग इल्ज़ाम क्यों स्त्री जाति को ही देने आते।।
मेरी समझ से बाहर दुनिया एक उम्र के बाद।
माँ की दखलअंदाजी से 'उपदेश' काम चलाते।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद