छाेटा छाेटा शरीर छाेटी छाेटी चिड़ियां
मन बहुत ललचाए कितनी अच्छी ।।
सुबह जल्दी हम लाेग उठ भी नहीं पाते,
तुम हमारे अांगन पहले से ही अाते।।
इधर - उधर चुग कर अन्न का दाना खाते,
पानी कहीं मिला ताे प्यास अपनी बुझाते।।
फुर्र फुर्र कर कर कभी पंख हिलाते,
अापस में चूं चूं कर अांख भी मिलाते।।
कभी उधर जाए कभी इधर अाए,
ये तुमारी अदा हमें बहुत भाए।।
ये तुमारी अदा हमें बहुत भाए.......
----नेत्र प्रसाद गौतम