परिस्थिति, परिवेश के अनुरूप,
धारण करते विभिन्न स्वरूप,
अद्भुत, अलौकिक, अप्रतिम,
धारित उनका हर एक रूप,
सांवली सूरत, मोहनी मूरत,
जो देखे छवि एकटक निहारत,
चलते जब वे ग्वाल बाल संग,
हाँथों में मुरली, सिर पे मोर पंख,
धर्म स्थापना व शत्रु संहार के लिए,
धारण करते चक्र और पांचजन्य शंख,
मानव मन की बाधाओं का कर हरण,
संसार सहित अर्जुन को किया निशंक।
श्री कृष्ण कहते, सुनो पार्थ,
त्याग कर माया रहो निस्वार्थ।
प्रेम, त्याग, धर्म स्थापणार्थ,
गीता का ज्ञान देते वो पार्थ,
माया-मोह से लसित अर्जुन का,
जागृत किया तुमने ही पुरुषार्थ,
दिया ज्ञान अनुपम, अमूल्य,
कर्म करो और रहो निस्वार्थ,
तुम्हीं प्रेम, तुम ही त्याग के आदि,
न तुमसे कुछ अलग न तुमसे इत्यादि।
🖊️सुभाष कुमार यादव