चुपके से ढल गई एक शाम—
जैसे सूरज ने थककर अपना दीप खुद बुझा दिया,
आकाश ने दीवारों-सी पलके गिरा दीं
और चाँद भी चुपचाप शोक का चादर ओढ़कर बैठ गया।
तुम चले क्या—
हवाओं ने अपने पाँव रोक लिए,
पेड़ों ने पत्तों को सहलाते हुए पूछा,
"आज यह सन्नाटा किसकी कमी बोल रहा है?"
धूप ने खिड़की पर अपना माथा रखकर रोशनी टपकाई,
मानो वो भी तुम्हें ढूँढ रही हो पसरे हुए आँगन में।
यादें—
खाली कुर्सी सा इंतज़ार करती हैं,
मेज़ की लकड़ी में दर्ज तुम्हारी हँसी अब भी सांस लेती है,
कप की किनारी पर तुम्हारी चाय की गंध
आज भी उंगलियों में चुपके से लौट आती है।
तुम न हो, पर जीवन तुम्हारे पदचिह्नों में रोज़ चलता है,
हम जैसे रेत पर नाम लिख दें
और लहरें उसे मिटा न सकें—
शायद तुम ऐसे ही हो
समय की हथेली में अंकित,
मिटकर भी न मिटने वाले।
रात कहती है—
"मैंने उसे तारों में छिपा रखा है,"
भोर जवाब देती—
"मैं उसकी आवाज़ को किरणों में ढोती हूँ।"
हर दिन कोई तत्व तुम्हारा संदेश लाता है—
कभी हवा बनकर, कभी परिंदे की पुकार में,
कभी बारिश के आंचल में भीगता हुआ।
तुम चले गए—
पर अंत नहीं हुआ,
बस कथा का पन्ना बदल गया।
अब तुम्हारी अनुपस्थिति एक गहरा संगीत है—
धीमा, पर सदा बजता हुआ;
दर्द नहीं, एक दीर्घ स्वर
जो दिल की वीणा पर थिरकता है
और सिखाता है—
जो सच में अपना हो
वो कभी जाता नहीं,
बस अदृश्य होकर और पास आ जाता है।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







