राह कैसे भटक गई जंगलों के संग।
शाम आई मुस्कराई अँधेरे के संग।।
आसमान साफ नजर आ रहा मुझको।
परिंदे सुकून से सोये डालियों के संग।।
रजत बिम्ब की तरह रही देह तुम्हारी।
सुकून एक पल का नही पेड़ के संग।।
भूखे पेट नींद कैसे आएगी जमीन पर।
रात कट जाएगी ऐसे वैसे यादो के संग।।
धीरे-धीरे बढ़ेगी वेदना उर की 'उपदेश'।
मेरे आँसू लुढ़केगे खुली आँख के संग।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद