सब्र की सीमा बढ़ा लो बुढ़ापा आया।
वो शख्स नही आया लो अँधेरा छाया।।
प्यार कुलबुलाता मेरे में तो उसके भी।
दुनियादारी के चक्कर में अँधेरा छाया।।
गम कुछ भी नही फिर भी उसका गम।
करीब दिल जाएगा कैसे अँधेरा छाया।।
बहुत दिन गुजारे खुशी खुशी साथ में।
इंतजार छटपटा रहा होगा अँधेरा छाया।।
तरस खाने की बारी 'उपदेश' की आई।
क़ुसूर मोतियाबिन्द का है अँधेरा छाया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद