शांत बैठी सोचती ना होता मिलना जुलना।
साँस मेरी रुक जाती अगर पूरा होता सपना।।
जिन्दा हूँ तो जिन्दगी से कोई शिकायत नही।
ऐसे ही गुजार लूँगी बस रहे व्यावहार अपना।।
मैं तो हूँ खुली किताब जैसी परिवार के लिए।
फिर भी कोई पढ़ ही नही पाता नसीब अपना।।
ठिकाना मेरा बना कर इज़्ज़त भी बख़्श दी।
कभी सोचा ही नही था मैंने घर बनाना अपना।।
कहते दिल की आवाज़ कभी खाली नही जाती।
दुआओ से 'उपदेश' रिश्ता कायम रहे अपना।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद