उन्नीसवीं शताब्दी की
कुलीन बुर्ज़ुआ के
सुसज्जित बगीचे वाले कोठी के
विशाल बरामदे में
पंक्तिबद्ध वे नग्न प्रतिमाएँ
कितनी मनोरम
कितना अपरूप
मैं मूर्ख
मैं अभागा
मैं बहुत बड़ा गधा
इसीलिए तो अब तक नहीं जानता
उस पथरीली शिल्प सृष्टि समुच्चय के
आदि स्रष्टा का नाम!
मेरे अग्रज
काव्य रसिक श्री श्री बालकृष्ण व्यास महानुभाव से
अभी सुना है
वह इस इतालवी कलाकृतियों के
हैं चरम निर्देशन
जबकि शलभ श्री रामसिंह
एवं शंकर माहेश्वरी के मतानुसार
वह सब फ्रेंच मूर्ति शिल्प के
चरम प्रतिफलन हैं
जी, क्या सोच रहा हूँ मैं
क्या बताऊँ...
एकदम बन गया मूक मैं तो
जबकि स्वीकारना ही है
प्रभाव
प्रत्येक सुबह
परिक्रमा करता हूँ अकेले-अकेले
उस बगीचेवाली
कोठी की
खुली आँखों से देखता हूँ
उन नग्न प्रतिमाओं का सौंदर्य
इस बूढ़े मन-प्राण को
बहुत भाते हैं!

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




