मुश्किल थोड़ी आई समझ ली प्रेम की भाषा।
मोहब्बत के निवाले से भूख मिटने की आशा।।
उमर पर हर कोई छल बल के दांव चल रहा।
जब भी भलाई चोट खाई रहा ना मन प्यासा।।
नसीहत के खलिहानों में आलोचक कम नही।
बीज अच्छे उन्ही के जिनकी सच अभिलाषा।।
चालाकी के समुन्दर में लहर उठती देखते रहे।
होशियारी ने सिखाई ना रिश्तों की परिभाषा।।
कर्म से भाग्य बदलने वाले पसीना बहाते रहे।
घुँघरू वाली पायल से 'उपदेश' करते तमाशा।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद