निर नीरज बंजर भूमि देखकर मेरा मन भय खाता है ,
हरा भरा पर्वत मेरे मन को भाता है
सुखी नीरस चट्टानों में कहां से आता पानी होगा,
खड़े थे पेड़ लगाए क्या इन्होंने अपनी सो का
पहाड़ पर्वत गिरिराज कट रहे सारा पर्वत आज,
भविष्य में न दीख पाएंगे हो गए हैं सारे साफ
पर्वत ऐसे की कुछ छोटे भी नहीं,
दिनकर के समक्ष मुंह किए तपते यह कितने अच्छे भी यही
सुखा धरातल तलछट पानी मन पहाड़ों पर खींच,
उम्मट उम्मट कर बादल बरसे पर्वत माला सिच
कट रहे धीरे-धीरे सब एक पहाड़ न बाकी रहेगा,
भावी पीढ़ी को फोटो फ्रेम दिखाएंगे जब वह पहाड़ों का कहेंगे
कवि का मन हुआ पहाड़ों पर मचल गया,
सो सो फिट उचे पहाड़ अब हड्डियां (रेत)में मिल गया
----अशोक सुथार

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




