समझकर जिसे हम अपना
तड़पते रहें
वो हीं अक्सर ..
ज़ख्मों पे मेरे नमक रगड़ते रहें।
गुनाह किया ..
क्या गुनाह किया
की तुझपे ऐतबार किया।
की बिना सांचे समझे
तुझसे मोहब्हत किया।
और तुमने ..
और तुमने गर्दीशों में मेरे
मुफलिसी में मेरे
मुझको अकेला छोड़ दिया ।
सिर्फ़ तोहमतें शाजीशें
नफरतें मुझे मेरा प्यार का
शीला मिला
पहले प्यार फिर तकरार
फिर आवारापन बंजारापन मिला
प्यार के बदले सिर्फ और सिर्फ
धोखा फरेब मिला
जो भी मिला बड़ा रकीब मिला
मोहब्बत में मुझको यारों..
अच्छा शीला मिला...
अच्छा शीला मिला...