घर थे जो कभी
अब मकान से लगते हैं
अपने रहते थे यहां
अब अंजान बसते हैं
आते जाते नजरें
टकरा जाती है कभी
निगाहें मिलाने से बचकर
कतरा के अब निकलते हैं
जुङाव और लगाव उनसे
जो दूर बहुत दूर है
शायद पास की नजर
अब कुछ कमजोर है
खानापूर्ति करने को
खाने पर कभी मिलते हैं
शिकवे गिले, गुफ्तगू के सिलसिले
दिल में सिमट के रहते हैं
जब ये नींद के आगोश में
वो रतजगा करते हैं
घर थे जो कभी
अब मकान से लगते हैं
चित्रा बिष्ट

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




