गम का खज़ाना गड़ा हमे विरासत में मिला
यूं जिन्दगी का तजुर्बा दर्दे हिरासत में मिला
कभी कभी शीशा खुद टकराता है पत्थर से
अच्छा यह सबक तो इस सियासत में मिला
पाने को नहीं ज्यादा कुछ हमारे वास्ते मगर
खोने को वजूद अपना ये अदावत में मिला
कोई नहीं साथ आएगा लड़ने हमारी लड़ाई
हर रोज नया दुश्मन दास तिजारत में मिला
पीने को निरे आंसू और खाने को बहुत गम
तो कौन भला बेबस इस निजामत में मिला II