बोलता था खुल के, अब क्यों सहम गया हूँ मैं,
शोर था जो रग-रग में, अब क्यों थम गया हूँ मैं?
जिस मिट्टी में खेला था, वो मेरी नहीं रही,
कागज़ बना दिया मुझे, और जम गया हूँ मैं।
छोटे से खिलौनों में, दुनिया बसती थी मेरी,
अब करोड़ों में भी क्यों यूँ बिखर गया हूँ मैं?
जिस माँ की गोद में था सुकून सा हर दर्द,
आज उसी को खोजते-खोजते थक गया हूँ मैं।
पहले ज़ख्म दिखते थे, मरहम भी मिल जाता था,
अब बिना निशान के क्यों जल गया हूँ मैं?
सपने थे जो आँखों में, रंगीन पतंग जैसे,
अब धागों की गाँठ में ही उलझ गया हूँ मैं।
जो हँसी कभी बेवजह फूटती थी होंठों से,
अब वजह ढूँढने में ही मर गया हूँ मैं।
ए ज़िंदगी! बहुत सिखाया तूने ये सफ़र,
पर वो मासूम मोड़ क्यों गँवा गया हूँ मैं?
बस एक बार लौटा दे, मिट्टी, धूप, वो छाया,
बचपन के उस पेड़ से क्यों कट गया हूँ मैं?
शारदा” की चीख़ में भी अब बच्चा रोता है,
क्यों उम्र का ये खेल समझ गया हूँ मैं?

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




