कोई सोचे मुझे दिन-रात बनना ऐसा है,
रहूॅं यादों में किसी के काम करना ऐसा है।
धड़कन बन धड़कुँ किसी दिल में,
मिज़ाज में सादापन लाना ऐसा है।
इतने हाथ उठे मेरी दुआ में के गिनती ना हो,
भला अपनी भलाई से किसी का करना ऐसा है।
किसी दिल में बना सकूॅं आशियाना अपना,
रिश्ता ख़ुलूस का सभी से निभाना ऐसा है।
किसी ज़ुबां पर तो हो मेरा नाम,मेरा काम,
बर्ताव हर किसी से करना ऐसा है।
अंत बड़ा ही शानदार और यादगार हो,
आगाज़ हमें कुछ अब करना ऐसा है।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️