मौसम-ए-इश्क रहता गुजर ना जाता।
उस फूल का रंग निखर निखर जाता।।
निगाह किसी और की चाहता कोई और।
परवरिश का दौर कुछ और ठहर जाता।।
बंदिशों का निर्माण होता जैसे मेरे लिए।
उसका भाग्य एक घर से दूसरे घर जाता।।
जिन्दगी कहानी बन गई गुलशन महका।
कुछ महक इधर कुछ महक उधर जाता।।
फिर महक का चर्चा 'उपदेश' रंग लाता।
तेरा हिस्सा मैं और मेरे हिस्से में तूँ जाता।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद