मां!
तेरे चेहरे की
झुर्रियों में छिपी
अनंत गहराइयों को
देख पाने की
ताकत नहीं है, मुझमें
ख़ामोश होंठों में
दबी इच्छाओं को
पढ़ पाने की
हिम्मत नहीं है, मुझमें
माथे की टेढ़ी लकीरों में
चिन्हित,अतीत को
समझ लेने की
चाहत नहीं है, मुझमें
दौलत, सोहरत, इज्जत
कमाते - कमाते
बहुत कमा लिया
तेरी चिंताओं का
जरा सा ऋण चुका सकूं
मां!!
आज इतनी दौलत नहीं है, मुझमें।
सर्वाधिकार अधीन है