वो हक़ीक़त पसंद होती है,
मुफलिसी ख़्वाब थोड़ी देखेगी।"
"कोई हमदर्द हो गरीबी का,
कोई सिल दे लिबास गुरबत का।"
"सारे इल्जाम इसके माथे पर,
मुफ़लिसी बे'गुनाह नहीं होती।"
"सबब बन जाए जो जुदाई का।
आप इतना करीब मत आना ।"
"तुमने सुनना ही कब हमें चाहा,
हमने आवाज़ देके देखा है।"
"दिल में खौफ़े खुदा ज़रूरी है,
हादिसे बोल कर नहीं आते।"
"ज़िंदगी को चुना है हाथों से।
हम भी बारीकियां समझते हैं।"
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद