इतना रोई है याद में तेरी ,
अपनी आंखें गवां के बैठे हैं।
तेरा दीदार जब नहीं होता,
मेरी आंखें उदास रहती है।
किसी में कमियां निकाल कर दे दें,
इल्म इतना भी हम नहीं रखते।
कोई शिकवा भी जिंदगी से नहीं ,
बेवजह आंखों में पानी आता है।
याद बन जाएंगे , यादों में महक जाएंगे ,
बनके आसूं तेरी आंखों से झलक जाएंगे।
आज भी पास हो मेरे दिल के,
आज भी भीगती ये आंखें हैं।
हादसा तो गुजर गया लेकिन,
रह गई आंख में नमी कैसी।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद