आप मेरे लिए बहुत अनोखे हैं पापा
मुझे याद है जब भी कोई कहता---
कवि जी, ऐसे कैसे चलेगा जीविकोपार्जन के लिए कमाना तो पड़ेगा
तब आप कहते-- 'कवि और कमाई क्या कहते हो भाई
कविता के माध्यम से हीं समाज में संवेदनशीलता का विकास किया जाना,स्वार्थी को उदात्त बनाया जाना संभव है
ऐसे में कविता की क्या कोई जरूरत नहीं है तुम्हारे समाज में, मैं दस बजे ऑफिस जाऊँगा तो मेरी अधूरी कविता क्या बौस पूरी करेंगे।"
और इस तरह अपनी शर्तों पर हीं ताउम्र आपका जीना, जरूरतों का पहाड़ मगर मानवीय मूल्यों से कोई समझौता न करना
ख़ुद ज़रूरतमंद होते हुए भी दूसरों की जरूरत पूरी करना
समाजिक उत्थान के लिए सबको प्रेरित करना
सुभाष जयंती मनाना, बुद्ध जयंती मना कर सुजाता की खीर बँटवाना
राहुल सांकृत्यायन भाषा शिक्षण संस्थान खोलकर उसे सफल बनाने के जद्दोजहद में लगे रहना
रेडियो पर आपकी कविता पाठ और सुनने के लिए पड़ोसियों का जमावड़ा लगना
दूरदर्शन पर आपकी कविता का प्रसारण और हम लोगों का एंटीना घुमाना
छोटे से जीले के सौंदर्यीकरण के लिए झील और उसमें पैगोडा बुक कॉफे बनवाने का बीड़ा उठाना
और उसके लिए अपने जीवन की आहुति देना अविस्मरणीय है इसीलिए तो आप अनोखे हैं
तभी तो मैं कहती हूँ आप हैं मेरे अनोखे पापा.....