मेरा घर मेरा नहीं है मैं जान गया हूँ
औकात कितनी है मेरी मैं जान गया हूँ
कुछ होने के झंझट में बिता दी जिंदगी सारी
और है मुझ में कुछ भी नहीं मैं जान गया हूँ
अब किसी के घर बहुत कम जाया करता हूँ मैं
घर किसका कितनी दूर है मुझ से मैं जान गया हूँ
ले चल तू मुझे कही भी अब कहाँ है शमशान,
कहाँ है बस्तियां मत बता मैं जान गया हूँ
क्यों खटकता हूँ उसकी आँखों में इतना मैं
मिला कर आंखों से आंखे, मैं जान गया हूँ
डराता है क्यों मुझे कुफ्र ए खुदा से तूं
कहाँ है तूं और कहाँ खुदा मैं जान गया हूँ