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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

मेरा घर मेरा नहीं है मैं जान गया हूँ

मेरा घर मेरा नहीं है मैं जान गया हूँ
औकात कितनी है मेरी मैं जान गया हूँ

कुछ होने के झंझट में बिता दी जिंदगी सारी
और है मुझ में कुछ भी नहीं मैं जान गया हूँ

अब किसी के घर बहुत कम जाया करता हूँ मैं
घर किसका कितनी दूर है मुझ से मैं जान गया हूँ

ले चल तू मुझे कही भी अब कहाँ है शमशान,
कहाँ है बस्तियां मत बता मैं जान गया हूँ

क्यों खटकता हूँ उसकी आँखों में इतना मैं
मिला कर आंखों से आंखे, मैं जान गया हूँ

डराता है क्यों मुझे कुफ्र ए खुदा से तूं
कहाँ है तूं और कहाँ खुदा मैं जान गया हूँ




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

Updesh Kumar Shakyawar said

Bahut Khub...कहाँ है तूं और कहाँ खुदा मैं जान गया हूँ...keep rocking ♥️

Devender Kumar replied

बहुत बहुत धन्यवाद आपकी सराहना के लिए

Lekhram Yadav said

बहुत खूबसूरत रचना, आपको सादर नमस्कार देवेन्द्र जी।

Devender Kumar replied

था क्या मैं कुछ भी नहीं आपके कहने ने बड़ा कर दिया शुक्रिया जनाब

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह!! बहुत ही उत्तम रचना, आपको सादर प्रणाम आदरणीय!!

Devender Kumar replied

बहुत बहुत धन्यवाद् जी

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