मैं जो कुछ भी हूँ अपनी कविताओं में हूँ,
इससे परे मैं कुछ भी नहीं हूँ।
जानते हो तुम मेरी हक़ीक़त का ठिकाना,
फिर भी लोगों से पूछते हो कि मैं कैसी हूँ।
बाहर से जो भी सुनोगे,
ग़लत ही सुनोगे मेरे बारे में।
भटको ना इधर - उधर,
आओ मेरी कविताओं पे।
ख़ुद मुझसे भी ना पूछना कि मेरा मिज़ाज कैसा है,
मैं ज़ुबां से बयां कर नहीं पाती हूँ।
कौनसी बात मुझे चुभती है,
और कौनसी अच्छी लग जाती है।
मेरी हँसी,मेरी खुशी, मेरा ग़म, मेरा प्यार,मेरी नफ़रत
सब कुछ कविताओं में बयां किया मैंने,
मेरी हर कविता में तुम्हें मेरा ढंग नज़र आएगा।
और पढ़ मेरी कविताओं को,
तू मुझे पूरी तरह समझ जाएगा।
~रीना कुमारी प्रजापत
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




