कभी जख्म तो कभी मरहम
बन जाता है ये वक्त
तो कभी नासूर की तरह
सिर्फ दर्द में तड़पने का
नाम बन जाता है वक्त
मैने सुना कि वक्त
हर दर्द हर हादसे भुला देता है
पर कब और कैसे हादसे
वो जो दिल को पत्थर कर गए
या वो जो अब उम्मीदें ही, खत्म कर गए
जब ये वक्त पत्थर ही बना देता है
तो उस पत्थर को काहे का दर्द
कैसी उम्मीदों के टूटने की तकलीफ
क्योंकि सब तो वक्त के साथ फिसल गया
जिसे वक्त गुजरने का नाम देकर
आगे बढ़ जाना कहा गया
पर कहा बढ़े वो सपने, जो वक्त ने खुद में बांध लिए
खुद तो वो रेत सा फिसल गया
और मुझे आगे का बढ़ने का दिलासा दे गया
अब वक्त, हर वक्त मरहम है
मेरे सपनो के लिए, मेरे जख्मों के लिए
और टूटे हौसले के लिए
क्योंकि अब सिर्फ तकलीफ है
और हर कदम वक्त मरहम है
क्योंकि जो वक्त तोड़ गया
ना उसे जोड़ पाएगा
ना संभाल पाएगा
बस हर कदम मरहम का नाम देकर
खुदको सबकी नजरों में
गिरने से बचाएगा
क्योंकि टूटे हुए सपनों
और छूटे हुए अपनो के दिए दर्द
कोई वक्त ना भर सकता है और ना भर पायेगा
बस खुदको मरहम का नाम दे
सही साबित करता जायेगा
इसके अलावा वो कुछ नहीं कर पाएगा...