(कविता) (पश्चिमी शैली)
देखते देखते पश्चिमी शैली हमें खा गया,
कचीपूडी नृत्य वह छम-छम कहां गया।।१।।
किसी से भी काेई भी नहीं डर रहे,
अाैरत मर्द दाेनाें नंगा नाच कर रहे।।
अखबाराें के पहले पन्ने इनके तस्बीर छापते,
सुबह-सुबह हर लाेग यही चाव से देखते।।
भारत नाट्यम के बदले डिस्काे अा गया,
देखते-देखते पश्चिमी शैली हमें खा गया।।२।।
साडी अाैर ब्लाेज में कितनी अच्छी लगती थी,
भारतीय वह नारी चांद जैसी दिखती थी।।
बदल गया उसका भी रुप अाैर रंग,
तन पे वश्त्र पहन रही वह भी बडी तंग।।।।
मर्द काे भी कुर्ता धाेंती के बदले टाई सूट भा गया,
देखते-देखते पश्चिमी शैली हमें खा गया।।३।।
कर के नकेल दूसराें का गाैरवान हाे रहे,
अस्तित्व अपना हम अपने अाप खाे रहे।।
जाने कहां क्याें किसके साथ घूल रहे,
भारत वासी हैं हम ये भी अाज भूल रहे।।
हमारी संस्कृति सभ्यता शब्दाें में ही रह गया,
देखते-देखते पश्चिमी शैली हमें खा गया।।४।।
देखते-देखते पश्चिमी शैली हमें खा गया.......