वो बहती थी झरनों में,
कल-कल की मीठी वाणी में,
जीवन के हर कोने में बसती,
थी वो अनमोल कहानी में।
वो ओस बनकर फूलों पे मुस्काती,
प्यासों के अधरों पर उतर आती।
कभी माँ की मटकी में छुप जाती,
तो कभी बादल बनकर बरस जाती।
जल ही जीवन है —
ये सिर्फ़ नारा नहीं,
धरती की अंतिम साँसों की
एक सच्ची चेतावनी है।
सूखती नदियाँ अब रोती हैं,
झीलें थक कर सोती हैं।
धरती की गोद में दरारें हैं,
मानव की भूलों की पुकारें हैं।
टपकता नल अब दोष नहीं,
हमारी लापरवाही का घाव है।
जो बूंदें हम बहा आए,
वो कल किसी का अभाव है।
चलो, फिर से सीखें —
बूँद-बूँद को सहेजना,
कुंओं को फिर से भरना,
और नदियों को बहने देना।
हर पौधे की जड़ में जीवन है,
हर बूँद में सृष्टि का स्पंदन है।
पानी बचेगा तो कल बचेगा,
इंसान रहेगा तो धरती हरेगा।
बूँद-बूँद बचाएँ,
जल से जीवन लौटाएँ।
क्योंकि... जल ही जीवन है।