"जिंदगी "
आहिस्ता चल जिंदगी,
अभी कई कर्ज चुकाना बाकी है
कुछ दर्द मिटाना बाकी है ,
कुछ फर्ज निभाना बाकी है ।
रफ़्तार में तेरे चलने से ,
कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
रूठों को मनाना बाकी है ,
रोतों को हँसाना बाकी है ।
कुछ रिश्ते बनकर ,
टूट गए कुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए ,
उन टूटे -छूटे रिश्तों के ,
जख्मों को मिटाना बाकी है ।
कुछ हसरतें अभी अधूरी हैं ,
कुछ काम भी और जरूरी हैं ,
जीवन की उलझ पहेली को ,
पूरा सुलझाना बाकी है ।
जब साँसों को थम जाना है,
फिर क्या खोना ,
क्या पाना है ,
पर मन के जिद्दी बच्चे को
यह बात बताना बाकी है ।
आहिस्ता चल जिंदगी ,
अभी कई कर्ज चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है,
कुछ फर्ज निभाना बाकी है।
रचनाकार- पल्लवी श्रीवास्तव
ममरखा, अरेराज, पूर्वी चम्पारण (बिहार )