तुम्हारी लेखनी अधूरेपन को पूरा करती।
अंतर्मन में छिड़ी जंग भी कसरत करती।।
अपने से लगते काम पड़ने पर दूर दिखते।
लालच के वशीभूत बाते मशक्कत करती।।
वेदना की शीतल बूँदें लुढ़की कपोल पर।
कैसी इच्छाएँ मन के अंदर हरकत करती।।
ख्वाब कहीं फ़िसल न जाए मदहोशी में।
दूरियाँ 'उपदेश' तरह-तरह दिक्कत करती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद