पहचानने में वक्त खोया धोखा खाकर जिया।
नींद टूटने से कुछ हासिल नही तडपकर जिया।।
बन्धन का वास्ता रहा खुदाई का खौफ रहा।
बदले न सोच-विचार मददगार बनकर जिया।।
तरह-तरह के लोग मिले भरोसा झूठे निकले।
कहावतो के दौर में 'उपदेश' लुटाकर जिया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद