ईमान की रोशनी से ज़िंदगी लिखते हैं वो, कामयाबी को नहीं, फ़र्ज़ को इबादत कहते हैं जो।
वो फ़िक्र में नहीं जीते कि आसमान में क्या है, वो जानते हैं कि मिट्टी को सींचने से ही हक़ मिलता है।
वो अधूरे ख्वाब को ज़िंदा रखने की कसम खाते हैं, तकलीफ़ के बावजूद भी ख़ुद को हर रोज़ आजमाते हैं। न मौसम का गिला है, न क़िस्मत का रोना, उन्हें दाम मालूम है, मेहनत का दाम क्या होता है।
मगर इक ज़ुबान है जो हर मोड़ पे बहाना लाती है, वोह काम नहीं करती, बस कल की कहानी गाती है।
वो कहती है: 'आज मिज़ाज नहीं', या 'वक्त ख़राब चल रहा है', ज़रिए अधूरे हैं, या शर्तें ही ग़लत थीं। कलम की स्याही में इश्क़ न था, या आवाज़ में दम कम था, ख़ुद की नालायकी को दुनिया का इल्ज़ाम बताते हैं।
वो हर ख़ुशी से दूर रहते हैं, मगर शिकायत की आँच नहीं जाती, साया भी साथ छोड़ दे, पर उनकी बहानों की फ़ेहरिस्त (सूची) नहीं घटती।
सत्य का फ़ासला बस इतना है, इशारों में समझो, एक रुककर तौहीन करता है, दूसरा गिरकर भी चलना जानता है।
ये ज़माना गवाह रहेगा, किस्मत का कमाल नहीं, कामयाबी उसे मिली, जिसने बहाना बनाना छोड़ दिया।
- ललित दाधीच

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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