मिला है दिमाग तो इस्तमाल कर,
अपनी सोच, अपने विचार पैदा कर,
मौत की तन्द्रा से थोड़ा बाहर निकल,
मिला है जीवन तो, जी जिन्दा हो कर
सजा है बाज़ार अपना मूल्य तय कर,
वरना बेच दिए जाओगे अपंग कर,
वणिक, नेता और पंडित खड़े है,
हो सजग स्वाभिमान की रक्षा कर
न जी किसी और की सोच बन कर,
अपनी निजता की कुछ तो रक्षा कर,
वणिक, नेता और पंडित तेरी सोच के,
आखेट पर, कभी तो इनकी ओट कर
मस्तिष्क तेरा न रह जाय दास बन कर,
घुस जायेंगे तेरे मस्तिष्क में उपाय कर,
धूर्त है बाजार में खोजते है तुम्हें हर रोज,
जाग अपने स्वत्व की कुछ तो रक्षा कर
आंखे खोल, पल पल जी कान खोल कर,
तौल तौल कर विचार विचार ग्रहन कर,
विचार बन, आंख कान से गुजर जायेंगे,
बांधेंगे तुझे तेरे मस्तिष्क पर नियंतरण कर