“माँ “के लिए कुछ भी लिखना
आसान हो ही नहीं सकता
क्योंकि इतनी ताक़त ही नहीं है किसी कलम में
जो इस शख़्सियत को ब्यान कर सके
अगर सोचें तो
यह किसी शब्द से बना ही नहीं
हमारी वर्णमाला का अकेला ऐसा अक्षर
जो सृष्टि का आधार है
हर घर की एक अनमोल डोर है
जो सबको एक साथ बाँधे रखती है
डोर में गाँठ न आ जाए
इसलिए सबके गिले शिकवे भी सुनती है
कितने ही राज़ दिल में छुपाए
अपने हर रिश्ते को सँभाले
ख़ुद खाली हाथ रह कर सबकी झोलियाँ खुशियों से भरती है
नहीं लिख पाओगे ? उस माँ के बारे में
जिन्हें हम माँ बनकर भी समझ न पाए
“माँ”स्वयम् प्रकृति है
जिन्हें समझना,लिखना या समझाना मुमकिन हो ही नहीं है ..
वन्दना सूद
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