माटी की है काया है, माटी में मिल जाए
क्षणभंगुर जीवन यह ,जिस पर तू इतराये।
पानी का है बुलबुला,तेरा हर एक श्वास
न जाने कब फूट जाए, टूट जाए विश्वास ।
रंग- रूप, धन -दौलत सबको झूठा जान
व्यर्थ के सब प्रपंच है ,मत कर तू अभिमान।
परण गिरें ज्यूं पादप से, यूं टूटे सांस की डोर
टूटेगी जब डोर यह , छूटेगा सब ठौर।
सत्कर्म, सद्भाव ही जाएंगे तेरे साथ,
मिट्टी में यह तन मिले ,कछु ना आएगा हाथ।
मिनी