मेरी ख़ामोशी को कौन सुनेगा ?
मुझ बदनसीब को कौन अपना कहेगा ?
जब अपनों ने ही अपना ना माना मुझे,
तो फिर कौन है जो मुझे अपना मानेगा ?
मेरे दिल को कौन पढ़ेगा ?
मुझ नाचीज़ को कौन समझेगा ?
जब अपनों ने ही नहीं पहचाना मुझे,
तो फिर कौन है जो मुझे पहचानेगा ?
मेरे ज़ख्मों को कौन भरेगा ?
मुझ बदक़िस्मत को कौन आसरा देगा ?
जब अपनों ने ही नहीं अपनाया मुझे,
तो फिर कौन है जो मुझे अपनाएगा ?
मेरी रूह को कौन चाहेगा ?
मुझ अभागन के गमों को कौन अपना बनाएगा ?
जब अपनों ने ही रहने को एक कोना ना दिया,
तो फिर कौन है जो मुझे अपना मकाॅं देगा ?
~ रीना कुमारी प्रजापत