घूंघट की ओट से कोई करे चोट रे
और कहे दिल में मेरे खोट नहीं
हे हे हे ! दुनिया जो माने सही पर मैं तो नहीं !
तंत्र से और मंत्र से
चोट करे यंत्र से
और कहे कोई षड्यंत्र नहीं
हे हे हे ! दुनिया जो माने सही पर मैं तो नहीं !
बात की बात में
घात करे साथ में
और कहे कोई आघात नहीं
हे हे हे ! दुनिया जो माने सही पर मैं तो नहीं !
नैनन के बैन से और चैन हरे शैन से
और कहे कोई बेचैन नहीं
हे हे हे ! दुनिया जो माने सही पर मैं तो नहीं !
फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा की फेसबुक वाल से साभार
आशुतोष राणा ने अपनी फेसबुक वाल पर इस कविता का वीडियो में पाठ किया ।
कविता के विषय में जानकारी देते हुए आशुतोष लिखते हैं- "घूँघट की ओट से कोई करे चोट रे.. यह कविता मेरे बड़े भाई स्वर्गीय श्री प्रभात कुमार जी ने लिखी थी। आदरणीय दादा भैया जब इस कविता को सुनाते थे तब उपस्थित जन समुदाय अनहद आनंद से झूम उठता था। मैंने इस कविता को आज उनके अन्दाज़ में पढ़ने का प्रयास किया तो मुझे अनुभव हुआ कि प्रशिक्षित अभिनेता होने के बाद भी मैं उनके पासंग नही हूँ। रचनाकार भले ही इक्स्पायर होते हैं लेकिन अच्छी रचनाएँ कभी इक्स्पाइयर नही होतीं वे सदैव प्रासंगिक होती हैं।"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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