मैं बड़ी ही मुफ़लिस हूॅं,
कभी किसी ने मुझे कोई तोहफ़ा दिया नहीं।
पर ख़्वाहिश ज़ाहिर करती हूॅं कि दो तुम कभी
मुझे तोहफ़ा तो ढ़ेरों किताबें दे देना,
हो जाऊं ताकि मैं भी मालामाल
क्योंकि मुफ़लिसी किसी और चीज़ की नहीं
किताबों की है मेरे यहाॅं।
मुझे बड़ी ही दिलचस्पी है किताबें पढ़ने में,
पर हैसियत है नहीं इतनी कि
किताबें खरीद सकूं।
इसीलिए इसी इंतज़ार में रहती हूॅं कि
शायद कोई कभी तोहफ़े में किताबें दे दे
या पुरस्कृत कर दे किताबों से,
ताकि शौक अपना मैं पूरा कर सकूं।
शौक तो और भी कई है मेरे,
पर कोई उनसे वाक़िफ़ नहीं।
एक शौक मेरा ग़ज़लगोई भी है,
जिसके लिए किताबें बहुत ज़रूरी है।
🖊️ रीना कुमारी प्रजापत 🖊️