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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

गजल - खुद को परछाई कहती है

कापीराइट गजल

खुद को परछाई कहती है

 नहीं अखरता साथ मेरा जब वो साथ में रहती है
रिश्ता नहीं कोई मुझसे पर साथ मेरे वो रहती है

 जब चलता हूं राहों में साया सा चलता साथ मेरे
पास बुलाता हूं उसको तो साफ मना कर देती है

 दूर रहो तुम मुझसे ये कई बार कहा मैंने उससे
पर दूर नहीं जाती मुझसे साथ मेरे ही रहती है

रहती है खामोश सदा कभी नहीं कुछ भी बोला
बिन बोले ही रोज मेरे संग-संग चलती रहती है

नाता नहीं कोई गम से खुशियों की मोहताज नहीं
वो देती नहीं मजा कोई, पर साथ मेरे ही रहती है

ये पूछा मैंने कई बार उसे कौन हो तुम बतलाओ
देती नहीं जबाव कभी खामोश सदा वो रहती है

समझाया बहुत हमने यादव छोड़ो संग मेरे चलना
वो मेरे ही संग चलेगी खुद को परछाई कहती है

  -    लेखराम यादव       (मौलिक  रचना)


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

वन्दना सूद said

बेहद ही खूबसूरत गज़ल 👏👏🙏🙏🙌🏻

Lekhram Yadav replied

आदरणीय वन्दना जी आपको बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद एवं सादर नमस्कार।

रीना कुमारी प्रजापत said

👌👌🙏🙏

Lekhram Yadav replied

आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद मेरी प्यारी बहना, आपकी तबीयत ठीक हो गई होगई, ऐसा मेरा अन्दाजा है, ईश्वर आपको स्वस्थ रखे।

कमलकांत घिरी said

वाह वाह शानदार गज़ल सर जी, वो खुद को परछाईं कहती है,,, बहुत सुंदर रचना 👌 प्रणाम स्वीकार करें 🙏

Lekhram Yadav replied

सुप्रभात सहित सादर नमस्कार कमलकांत भाई, आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद, मगर आपने ये क्यों कहा कि हम आपको भूल गए, हमने आपसे सिर्फ यह पूछा था कि कहां रहते हो, दिखते नहीं हो, और आप हमें ही कह रहे हो कि हम आपको भूल गए, मैं आपको भूल जाऊं ये तो हरगिज नहीं हो सकता।

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