ख़ामोशी बेज़ुबां नहीं होती
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अक्सर ऐसा होता है—
ज़ुबां पर आते-आते लफ़्ज़ ठहर जाते हैं
होंठों की चौखट पर,
और दिल की गहराइयों से उठी आवाज़
आँसू बनकर आँखों में उतर जाती है।
कहने को तो दर्द कभी बेज़ुबां नहीं होता,
न ही उसका एहसास बे-एहसास होता है।
कभी ख़ामोश रहकर भी
हम सारी बातें कह जाते हैं,
जैसे चुप्पी ही एक आईना हो
जो दिल के राज़ खोल देती है।
हमारे न चाहने पर भी—
शब्द अक्सर धोखा दे जाते हैं,
मगर ख़ामोशी…
हमेशा सच्ची, गहरी और साफ़ होती है।
हाँ, दर्द कभी बेज़ुबां नहीं होता,
और ख़ामोशी भी…
कभी बेज़ुबां नहीं होती।
— डॉ. फ़ौज़िया नसीम शाद

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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