पहले समझा था कि तुम अपने हो,
आजमाया तुम्हें तो तुम ग़ैर निकले।
अपनों की ही बस्ती में अकेले रह गए,
ऐसे उन अपनों के मिज़ाज बदले।
रहा नहीं अब कोई वज़ूद हमारा,
कि संभलते- संभलते भी हम इतने फिसले।
हाल हमारा देख पराए भी पनाह देने लगे,
पर उन मेरे अपनों के दिल नहीं पिघले।
ज़िंदगी से जो शिकायत है वो ख़त्म हो जाए,
ग़र कोई इतना चाहने लगे मरने से पहले।
🖊️ रीना कुमारी प्रजापत 🖊️
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




