कमी खलती है....!
कमी खलती है तुम-बिन भौर और शाम की तरह
लम्बी गहरी अँधेरी रात औ ढलती सांझ की तरह...!
आँखों भी नमी ले अपनी पलकों की देह लीज़ पर
हर पल राह तकती हैं तुम्हारी पूनम के चांद की तरह...!
दिल धड़कता है जोर जोर से डर लगता है मुझे भी
अमा वस सी अ केली रा तों में बुझते चिराग़ की तरह...!
कदम भी डगमगा उठते हैं अकेले चलते हुए
डर है छलक न जाऊँ कहीं मयखाने में शराब की तरह...!
कमी तो खलती है तुम बिन क्या होगा इस ज़िन्दगी का
मन्दिर की चौखट मिले या समा धी टूटे गुलाब की तरह...!
मुमकिन है तो फिर से लौट आना इन गलियों में तुम
ज़िन्दगी में ज़िन्दगी न सही भूली बिसरी याद की तरह...!
मानसिंह सुथार©️®️

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




