कहाॅं गया वो तार का हाथों से बनाया पहिया,
कहाॅं गया साईकिल का वो टूटा पुराना पहिया।
खो गया कहाॅं वो ज़माना,
और खो गया कहाॅं अब इन सबसे मोहब्बत करता
वो दीवाना।
कहाॅं खो गए वो दीया और बाती,
कहाॅं खो गए वो
थे जो हमारे बचपन में अंधेरों के साथी।
कहाॅं खो गई वो कागज़ की कश्ती,
और कहाॅं खो गई वो प्यार प्रेम से महकती बस्ती।
कहाॅं खो गई वो परियों की कहानियां,
और कहाॅं खो गई वो दादी और नानियां।
कहाॅं खो गए वो खेत खलिहान,
और कहाॅं खो गए वो गन्ना और आम।
कहाॅं खो गया वो तराना,
जिसे गाया करता था कभी पूरा ज़माना।
कहाॅं खो गया वो फ़साना,
जिसे सुनाया करता था कभी ये ज़माना।
कहीं खो गए हैं अब ये सब,
और खो गया वो ज़माना।
💐 रीना कुमारी प्रजापत 💐