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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

कहाॅं खो गया वो ज़माना ?

कहाॅं गया वो तार का हाथों से बनाया पहिया,
कहाॅं गया साईकिल का वो टूटा पुराना पहिया।
खो गया कहाॅं वो ज़माना,
और खो गया कहाॅं अब इन सबसे मोहब्बत करता
वो दीवाना।

कहाॅं खो गए वो दीया और बाती,
कहाॅं खो गए वो
थे जो हमारे बचपन में अंधेरों के साथी।

कहाॅं खो गई वो कागज़ की कश्ती,
और कहाॅं खो गई वो प्यार प्रेम से महकती बस्ती।

कहाॅं खो गई वो परियों की कहानियां,
और कहाॅं खो गई वो दादी और नानियां।

कहाॅं खो गए वो खेत खलिहान,
और कहाॅं खो गए वो गन्ना और आम।

कहाॅं खो गया वो तराना,
जिसे गाया करता था कभी पूरा ज़माना।
कहाॅं खो गया वो फ़साना,
जिसे सुनाया करता था कभी ये ज़माना।

कहीं खो गए हैं अब ये सब,
और खो गया वो ज़माना।
💐 रीना कुमारी प्रजापत 💐








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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

Lekhram Yadav said

सुप्रभात मेरी प्यारी बहना, जमाना तो वही है मगर किरदार बदल गए हैं, बचपन की यादों को सहेजना और उसे शब्दों की माला में पिरोना कोई आपसे सीखे अति सुन्दर रचना है, आपको प्रणाम।

रीना कुमारी प्रजापत replied

सुप्रभात🙏 आभार आपका

वन्दना सूद said

बहुत ही सुन्दर रचना ma’am 👏👏सही कहा आपने कि अब खो गया वो ज़माना

रीना कुमारी प्रजापत replied

शुक्रिया जी

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut sundar likha mam

रीना कुमारी प्रजापत replied

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