तुम अनुपम रचना ईश की,
प्यार से बड़े सजाया है ।
कहने को हो मेरी बेटी,
रूप उसी का पाया है ।
देखी जब-जब तेरी सूरत,
नूर जबीं पे आया है ।
ईश्वर-अल्लाह काशी-काबा,
सब तुझ में ही पाया है ।
पंखुड़ियों सी है कोमलता,
तितली जैसी चंचलता,
कलियों सी मासूम है तू,
पीपल की ठंडी छाया है ।
खुशियां बांटी प्यार किया,
हर काम किया उल्लास से,
जीवन के गूंगे गीतों को,
पंचम सुर में गाया है ।
आँखें थीं पर रोशनी न थी,
देख न मैं कुछ पाता था,
दिल के अंधियारे कोनों में,
तुमने अलख जगाया है ।
सुनता था दुनियावी बातें,
बस संसार से था बावस्ता,
रस्ता दाता की गलियों का,
मुझको तुमने दिखलाया है ।
लाड़ तुम्हारा प्यार तुम्हारा,
ज्ञान तुम्हारा भाव तुम्हारा,
अक्स है माँ का शक्ल लली में,
नूर-ए-खुदा दिखलाया है ।
ओझल वह आंखों से सबकी,
नज़र कभी न आती है,
नन्ही सी बेटी में मैंने,
अक्सर माँ को पाया है ।
जाहिर में कुछ और हो दिखती,
पर्दे में कुछ और हो,
तारीक़ी से रोशनी तक के,
राज़ को मैंने पाया है ।
जुदा कभी न था मैं तुमसे,
तुम मुझसे न बिछड़ी थी,
रूप बदलते रहे हमारे,
सब करतार की माया है ।
----केवल कृष्ण पंजाबी