जनता जनार्दन का जो होता है हाल,
नैतिकता के सारे बुरे होते हैं सवाल।
नेता जी तो बस अपनी चमचमाती कार में,
लेकिन जनता तो राह भटकती है, जैसे गधों के बाजार में।
नेता जी कहते हैं, 'जनता की आवाज हूं मैं,'
लेकिन गरीब की आवाज कभी नहीं सुनते, केवल अपने बनाते हैं वो नियम।
क्या करें, नेता जी के पास है वादा,
जबतक वोट ना मिले, तबतक वह सिर्फ खेलते हैं अपना फाड़ा।
जनता जनार्दन की आवाज़ सुनकर हैरान हूँ,
कभी सड़कों पर नारे लगाती, कभी उनका दिल पिघलाती।
नेता जी कहते हैं, ‘जो चाहो हम करेंगे,’
लेकिन जनता की समस्याएं बिना हल हुए ही रह जातीं हैं।
नेता जी के लम्पूचे हैं बड़े सख्त,
कभी इनका झूठ इतना चलता, की कोई न पूछे, "कहाँ की ये सच्चाई के नायक?"
इतिहास में उनकी छवि तो बनी रही,
लेकिन जनता बस यही सोचती है, ‘नेता जी, प्लीज अब तो समझो हमारी तकलीफों की कड़ी।’
कभी प्रचार में उनकी महिमा होती है ऊंची,
लेकिन ज़रा सा वोट मिले तो सब ‘भुला’ जाती है पूरी।
जनता जनार्दन जानती है, नेता जी तो काम नहीं करेंगे,
लेकिन फिर भी हर चुनाव में यही उम्मीद लगाएंगे।
नेता जी की राजनीति का तो यही चक्कर,
जो कल बड़ा था, आज वो है ‘गटर’!
कभी झूठे वादे कभी बेमानी बातें,
नेता जी की बातें अब हों चुकीं बेताबी।