लोग बट गए थे सरहदें भी बट गई थी,
चल दिये थे घर छोड़ कर नये घर की तलाश में,
क्या कत्लेआम हुआ अपनो ने अपनो पर ही वार किया,
चल दीए अब तो यादों को समेट कर,
बीती यादों की तलाश में बीती यादों की तलाश में,
कुछ इस कदर किया था बटवारा दिल का,
अपने-अपनों को भूल गये थे,
सरहदें हो गई थी दूरियां हो गई थी,
सिर्फ इक नये मुल्क की तलाश में,
सिर्फ इक नये मुल्क की तलाश में,
क्या ख़ुस हो तुम इस मंजर को देख कर,
कारवां रुक गए थे नए कारवां की तलाश में,
दिल जुदा हुए दिल से अपने-अपनो से बिछड़ गए,
उन मज़बूरियों की तलाश में,
उन मज़बूरियों की तलाश में,
अब मैं सिर्फ यही सोचता हूं,
क्यू हम बट गए क्यू हम जुदा हुए,
क्या एक होकर जिंदगी नहीं चल रही थी,
क्यों हो गई सरहदें क्यों हो गई दूरियां,
एक नये मुल्क की तलाश में,
एक नये मुल्क की तलाश में,
कवि......राजू वर्मा 26/05/24
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