अपनी मर्ज़ी से हम कहांँ दूर तक जातें हैं
ये हवाएंँ जिधर ले जाती है उधर जातें हैं
अक्सर होता है वही जो होना होता है
हम तो बस कल्पनाएंँ करते रह जातें हैं
दिल की बातें यहांँ समझता है कौन भला
हम समझा-समझा कर आखिर थक जाते हैं
कोई किसी के साथ रहता कहाँ है अन्त तक
सब तन्हाँ आते हैं तन्हाँ मिट्टी में मिल जाते हैं