घर की दहलीज के बाहर जब से तुम मिली।
ले रहा हूँ चाय की चुस्की तुम्हारे साथ भली।।
एक गजब की शान्ति से तृप्त हो जाता मन।
चुनौतियो से मुक़ाबला करने की शक्ति मिली।।
शाम गुजरने को थी रात का आगमन हुआ।
मन में उठे तूफ़ान को विराम देती तुम भली।।
प्यार से भर देती नई स्फूर्ति के साथ अमन।
जिससे जद्दोजहद की 'उपदेश' ताकत मिली।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद