यूं तुम मेरी ग़ज़ल सुनोगे सोचा ना था,
यूं कभी मेरी नज़्म महफिलों में सुनाओगे
सोचा ना था।
कितने ही शायरों की शायरी पर वाह - वाही
लुटाते देखा तुम्हें,
पर यूं कभी मेरी शायरी की तारीफ़ करोगे
सोचा ना था।
यूं अचानक मिल जाओगे सोचा ना था,
यूं रुबरु तुम शेर कहोगे सोचा ना था।
वैसे ख़्वाबों में तो हमेशा आते ही थे तुम,
पर यूं कभी हक़ीक़त में आओगे सोचा ना था।
यूं तुम मेरी किताब पढ़ोगे सोचा ना था,
यूं हर सफ़्हा बार - बार पलटकर देखोगे सोचा ना था।
वैसे कितने ही शायर अज़ीज़ है तुम्हारे,
पर यूं कभी मुझे भी अपना ख़ास समझोगे सोचा ना था।
🌼 रीना कुमारी प्रजापत 🌼