रहने दो, रहने दो
मेरे गांव को गांव ही रहने दो
पर्वतों से छल छल छल छल
गंगा सा निर्मल अविरल
नदियों से कल कल कल कल
हिम सा शीतल शीतल
सुंदर जल बहने दो, बहने दो
रहने दो.........
तनिक स्पर्श से जिनके
तरुवृंद गाना गाते हैं
धान की बालियों के संग
कृषक मन लहरातें है
मटर भी इठलाती है
सरसों भी बलखाते है
महुए की मदमस्त सुरभि
हम सबको मदमाते है
शुद्ध निर्मल, स्वच्छ पवन बहने दो , बहने दो
रहने दो.......
तलाशते रंग जिंदगी के
जहां बीच में गंदगी के
नीरस जल,रोगीले पवन वहां
ढीले जन के ढीले मन जहां
मचते शोर,धुंए उगलते
धूं धूं करते तन है जलते
जहां पंच है,ना परमेश्वर
न्याय पैसे का, पैसे का बसर
गांव को ऐसा शहर न बनने दो,न बनने दो
रहने दो............
सर्वाधिकार अधीन है