एक शाम आ बैठी, पास मेरे अनमनी सी..
धुंधला सा चेहरा, जुल्फें थी कुछ घनी सी..।
लबों पर थे दिन भर के, कई कई अफसाने..
कुछ बातें बिगड़ी, तो कुछ बिगड़ का बनी सी..।
चेहरा उसका हर घड़ी, सियाह सा होने लगा..
होंठ कुछ बुदबुदाने लगे, भौंहें कुछ तनी सी..।
फिर वो मादक अदाएं लिए, अंगड़ाई लेने लगी..
कुछ महक सी उठी, नज़र आई गुल–बदनी सी..।
जाते जाते देखने लगी, अंदाज–ए–नश्तर लिए..
ज़िस्म मेरा थरथराने लगा, उठने लगी सनसनी सी..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




