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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

दिशाहीन जीवनशैली

दिशाहीन जीवनशैली
जब संस्कृति से सजता हमारा भारत था,
तब संस्कारों से महकता हर आँगन था।
पुरातन की बातें खूब खरी थीं,
शास्त्रों की महिमा उनसे भी बड़ी थी।

माँ को घर का आँगन,पिता को घर की छत समझते थे,
बड़ों के सम्मान में ही अपना मान समझते थे।
उनके चरणों में नतमस्तक रहते थे,
पत्नी गृहलक्ष्मी और पति को परमेश्वर कहते थे।
बच्चों को भगवत्स्वरूप जानकर लाड प्यार करते थे,
हर इच्छा उनकी पूरी करने को हर क्षण तत्पर होते थे।

आधुनिकता ने जीवनशैली को इस तरह छेड़ा,
संस्कृति की रुचियों को कुछ यूँ मोड़ा
कि रिश्तों की कड़ी कमज़ोर हो गई,
मर्यादाएँ टूट गईं,संस्कार बिखर गए।
न मान रहा, न सम्मान बचा,
न रही आँखों में शर्म,
न वाणी में संयम रहा।
भावनाओं को अब समय के तराज़ू पर तोला जाने लगा,
शास्त्रों के बनाए बाँध तोड़कर,सब अपनी दिशा बहने लगे।

यदि शास्त्रों को बंदिश न माना गया होता,
सेवा,त्याग,प्रेम,धर्म और कर्म को ही जीवन का सार जाना गया होता।
तो प्रकृति से पाई इस जीवनशैली को,यूँ न तोड़ा गया होता
और सुख के प्रांगण में दुख के बादल कभी नहीं ठहर पाते ..
वन्दना सूद


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सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (8)

+

शिवचरण दास said

बिल्कुल सही कहाँ वन्दना जी. ...जाने कहाँ गए वो दिन. .जब जिन्दगी नैसर्गिक थी कृत्रिम बोझ नहीं

वन्दना सूद replied

जी सही कहा आपने sir
बहुत कुछ बदल गया अब

आलम-ए-ग़ज़ल - परवेज़ अहमद said

आप ने जो लिखा है वो सौ प्रतिशत सच है! कड़वी सच्चाई है! आधूनिकता ने बर्बाद कर के रख छोड़ा है! काश सब पहले जैसा हो जाता लेकिन वक़्त पीछे मुड़कर कहाॅं देखता है। शायद ये सब क़यामत (प्रलय) की निशानी है।

वन्दना सूद replied

बिल्कुल सही कहा आपने
शायद क़यामत की ही निशानी है

सरिता पाठक said

सच कहा आपने वंदना जी बहुत खूब 👌🙏

वन्दना सूद replied

🙏🙏

Lekhram Yadav said

बहुत ही सुंदर और शिक्षाप्रद रचना सुप्रभात सहित सादर नमस्कार वन्दना जी।

वन्दना सूद replied

शुक्रिया sir
आप इतने समय से दिखे नहीं
कैसे हैं आप ? आपकी गजलों को बहुत मिस किया हमने

पवन कुमार "क्षितिज" said

अपनी पीढ़ी का ये स्थाई दर्द है जो आपने कविता में बड़े बेहतर ढंग से बयां किया है..

वन्दना सूद replied

शुक्रिया sir

सुभाष कुमार यादव said

आधुनिकता की जिस अंधी दौड़ में दौड़ रहे वास्तविकता में वह दिशाहीन है। हमारी संस्कृति, परम्परा, संस्कार का क्षरण अत्यंत दुखद है। बहुत सुंदर रीति से इस पीड़ा को आपने उकेरा है।👌👌🙏

वन्दना सूद replied

🙏🙏सही कहा आपने

श्रेयसी said

बिल्कुल सही कहा ये कसक बढ़ती हीं जा रही अब खत्म होने वाली नहीं। बहुत सुंदर रचना 🙏🙏

वन्दना सूद replied

सच कहा आपने अब कुछ नहीं हो सकता

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

प्रतिस्पर्धा के इस युग में लोग स्वयं को शिक्षित और सक्षम बनाने में इतने खो गये हैं कि संस्कारों को पीछे छोड़ते जा रहें हैं जो भावी पीढ़ी के लिए अच्छा संकेत नहीं है। आपकी रचना में एक शाश्वत संदेश भरी हुई है।👌🌹🌹🙏

वन्दना सूद replied

ऐसी विद्या का कोई मतलब नहीं जो आपकी संस्कारों को खत्म कर रही है

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