दिशाहीन जीवनशैली
जब संस्कृति से सजता हमारा भारत था,
तब संस्कारों से महकता हर आँगन था।
पुरातन की बातें खूब खरी थीं,
शास्त्रों की महिमा उनसे भी बड़ी थी।
माँ को घर का आँगन,पिता को घर की छत समझते थे,
बड़ों के सम्मान में ही अपना मान समझते थे।
उनके चरणों में नतमस्तक रहते थे,
पत्नी गृहलक्ष्मी और पति को परमेश्वर कहते थे।
बच्चों को भगवत्स्वरूप जानकर लाड प्यार करते थे,
हर इच्छा उनकी पूरी करने को हर क्षण तत्पर होते थे।
आधुनिकता ने जीवनशैली को इस तरह छेड़ा,
संस्कृति की रुचियों को कुछ यूँ मोड़ा
कि रिश्तों की कड़ी कमज़ोर हो गई,
मर्यादाएँ टूट गईं,संस्कार बिखर गए।
न मान रहा, न सम्मान बचा,
न रही आँखों में शर्म,
न वाणी में संयम रहा।
भावनाओं को अब समय के तराज़ू पर तोला जाने लगा,
शास्त्रों के बनाए बाँध तोड़कर,सब अपनी दिशा बहने लगे।
यदि शास्त्रों को बंदिश न माना गया होता,
सेवा,त्याग,प्रेम,धर्म और कर्म को ही जीवन का सार जाना गया होता।
तो प्रकृति से पाई इस जीवनशैली को,यूँ न तोड़ा गया होता
और सुख के प्रांगण में दुख के बादल कभी नहीं ठहर पाते ..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




