लुटाकर सबकुछ अपना
क्यों किसी पे फना हो
जातें हैं लोग।
हैं लोग बड़े बेवफ़ा
जताकर वफ़ा अक्सर
कर जातें हैं बेवफाई।
कोई संगदिल सनम
तो कोई तंगदिल निकल
जाता है।
तिज़ारतों की महफिल में
दिल की भी बोली
लगा जाता है।
है रास ज़िगर को कोई
तो अपनों से भी दामन
छुड़ा लेता है।
अक्स में भी लोगों को
रक्स नजर आता है।
कोई सचमुच में कातिल तो
कोई बनके मासूम कत्ल कर
जाता है।
वह नूरे इलाही बनकर
सुंदर सुराही
पानी ज़हर का पीला जाता है।
लूटकर सबकुछ
मुस्कुराते हुए
आदमी का सबकुछ लूट
ले जाता है।
और प्यार भरा ये मन
कुछ भी ना कर पाता है
दिल अक्सर तड़प कर
रह जाता है..
दिल सहम सा जाता है..
दिल दहल सा जाता है...